निज स्वरुप को परम रस जामे भरयो अपार !
वंदु परमानन्दमय समयसार अविकार !!
जैन दर्शन का सिरमौर ग्रन्थ " समयसार " आचार्य कुन्दकुन्द की अनुपम रचना है ! निज भगवान् आत्मा के स्वरुप का प्रतिपादक यह ग्रंथाधिराज जैनागम का अजोड अमूल्य रत्न है ! समयसार जिनवानी श्रुतगंगा का सारभूत आध्यात्म रसपूर्ण ग्रन्थ शिरोमणि है ! समयसार केवली -श्रुतकेवली की वाणी सार है ! इसके अध्ययन -मनन- चिंतन एवं अनुभवन से अपने तथा पर के मोह का नाश होता है
Friday, December 30, 2011
" प्रभु अक्षतपुर के वासी हो, मै भी तेरा विश्वासी हूँ |
क्षत - विक्षत में विश्वास नहीं ,तेरे पद का प्रत्याशी हूँ || "
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