Wednesday, December 21, 2011

श्रमण संस्कृति के मुकुटमणि आचार्य कुंद कुंद

श्रमण संस्कृति के मुकुटमणि  आचार्य कुंद कुंद  दिगम्बर मूल परंपरा के वज्र कवच है |  2000    हजार  वर्ष      से जैन क्षितिज  पर चमकते दिनकर कुन्दकुन्द ने अपनी प्रभा से शाशन की धवल कीर्ति को जीवित रख इसका शीर्ष ऊँचा किया है | इनके सर्वाधिक गरिमामयी यशश्वी जीवन   का प्रबल प्रमाण यह है की उन्हें भगवान महावीर और उनके  मुख्य गणधर   गौतम स्वामी के तत्काल बाद मंगल के रूप में स्मरण किया जाता है | यह एक अबाधित सत्य है की आचार्य  कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन धर्म की मुद्रा अथवा पहचान ही बन गए है |
       अध्यात्म श्रुत शिखर की नीव के पत्थर ,भरत क्षेत्र  के जन-मन को आत्म विद्या का पाठ पढ़ाने वाले आचार्य कुन्दकुन्द के ज्ञान सिन्धु से प्रवाहित अध्यात्म की अजस्र धारा आज    भी इस  धरती को समृद्ध बना लोक मांगल्य की और बढ़ रही  है | साहित्य धारा की सृजन श्रृंखला में गद्य  की अपेक्षा पद्य में  भावाभिव्यक्ति क्षमता अधिक होने से काव्य को ही उन्होंने अपने साहित्य प्रणयन का माध्यम बनाया और जैन साहित्य कोष को विपुल काव्य भण्डार देकर इस विश्व को उपकृत किया है | सचमुच कुन्दकुन्द की आत्मविद्या का यह अशोक वृक्ष मूलाम्नाय की  छाया देने वाला मजबूत जड़ो वाला तरु है | 
       दिगम्बर आमनाय  ही मूल आम्नाय  कही जाती है , मूल का अर्थ प्रधान एवं जड़ भी होता है | जैन श्रावक व साधू की कसौटी  मूलगुण होती है और वह मूल परम्परा का अनुगामी होता है | जिस प्रकार मूल के बिना वृक्ष व शाखा की उत्पत्ति संभव नहीं होती है वैसे ही मूल मार्ग के बिना परमार्थ की उत्पत्ति असंभव है |   आचार्य कुन्दकुन्द ने  मुल संघ   परम्परा की संरक्षा एवं परिवर्धन  करते हुए विशुद्ध चारित्र धर्म एवं मुल आचार संहिता की पुनः स्थापना की | मुल आम्नाय  मुल दिगम्बर जैन धर्म की सुरक्षा के लिए किये गए इस योगदान से उनके अंतर्मुखी व्यक्तित्त्व  का अंकन कर लेना कठिन नहीं है | 
         वे ऋद्धि प्राप्त महा मुनि थे  बाल दीक्षित थे विलक्षण प्रज्ञा सम्पन्न थे इतना मात्र उनके व्यक्तित्त्व का पैमाना नहीं वरन मुख्यतः इसलिए की उन्होंने जनजीवन के उत्थान हेतु आध्यात्म की व्यापक दृष्टि, शास्वत सुख के अकाट्य समाधान दिए जिन्हें पाकर  मृतक कलेवर को मनो प्राण वायु ही मिली है | वास्तव में उनके व्यक्तित्त्व का भावपक्ष जितना धवलधारा सा  स्वच्छ है द्रव्य पक्ष भी कोमल भावनाओ से आच्छादित पूर्णमासी के चन्द्र सा श्वेत है | आपके   इस व्यक्तित्त्व व साहित्य की गोदी में अनेक निर्ग्रन्थ संतो को विश्राम मिला है |
 आगम का सार आध्यात्म में छुपा होता है , अतः आगम व आध्यात्म का प्राण शुद्ध चैतन्य को ही उन्होंने अपनी लेखनी का मुख्य बिंदु चुना | कुन्दकुन्द के यह परमागम स्वर्ण सौरभ योग है ,भव्य जीवो पर अत्यंत करुणा कर भरत क्षेत्र की इस पावन   भूमि  पर आध्यात्म वाटिका का बीजारोपण कर संत शिरोमणि  ने  इसका सींचन किया है जिस  पर खिले  परमागम की शीतल  छाया  अनेको   मुनिवरो अज्ञ प्राणियों को मुक्ति की राह देती है .................
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1 comment:

  1. pratak atma parmatm swroop ha apni atma ko pripurn dekhna hi sar ha

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