Saturday, December 17, 2011

समयसार

निज स्वरुप को परम रस जामे भरयो अपार !
वंदु परमानन्दमय समयसार अविकार !!
जैन दर्शन का सिरमौर ग्रन्थ " समयसार " आचार्य कुन्दकुन्द की अनुपम रचना है ! निज भगवान् आत्मा के स्वरुप का प्रतिपादक यह ग्रंथाधिराज जैनागम का अजोड अमूल्य रत्न है ! 
       मंगलाचरण  में भगवान् महावीर और उनके मुख्य गणधर गौतम स्वामी को नमस्कार करने के तुरंत बाद जिन संत शिरोमणि आचार्य कुन्दकुन्द को समरण वंदन कर प्रत्येक जैनी अपना मांगलिक कार्य प्रारंभ करता है  ऐसे आचार्य की यह अद्वितीय रचना समयसार है ! ऐसे महामंगल स्वरुप आचार्य जिनकी परम्परा ....... जिनकी आम्नाय का स्वयं को कहकर हम सभी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते है ! ऐसे आचार्य की यह अद्भुत कृति  है समयसार !
     पञ्च परमागमो में भी निज भगवान् आत्मा का जैसा सूक्ष्म निरूपण इस ग्रंथाधिराज समयसार में किया गया है वेसा अन्यत्र कही भी दुर्लभ है ! अध्यात्म गगन में विचरने वाले आचार्य कुन्दकुन्द की रचनाये समय्क्त्व, संयम व सिद्धांतो का दस्तावेज है ! जिनमे जीवन की शाश्वत अनुभूति व सुख दुःख की समस्याओ के सरल समाधान प्रस्तुत कर दुःख की व्याख्या का ही अंत कर द्र्व्यद्रिष्टि  का सुखद अवदान विश्व को दिया है ! 
             जिस ओर हमारी रूचि होती है उस ओर हमारा चिंतन सहज ही चलता रहता है और विषय पर हमारा निरंतर चिंतन चलता रहता है वही विषय हमारी अभिव्यक्ति में सहज ही आता रहता है इसी प्रकार आत्मतत्व की गहरी रूचि वाले महामुनि का  दिन रात  आत्मा का ही चिंतन चलता रहता है और वही चिंतन उनकी वाणी से प्रस्फुटित होता रहता है! 
          ग्रंथाधिराज समयसार की रचना  छटे- सातवे गुणस्थान में भ्रमण करते हुए की गयी है ! सातवे गुणस्थान की  शुद्धात्मानुभूती  में आकंठ डूब कर  वापस छटे गुणस्थान में आने पर आचार्य को अत्यंत करुणा  भव्य जीवो के  प्रति आयी और हमारे महाभाग्य से शास्त्र रचना करने का विकल्प भी  उन्हें आया और इस प्रकार इन परमागमो का प्रादुर्भाव हुआ  !
         समयसार की  गाथाओ में केवलज्ञान की झंकार है ......... चैतन्य चमत्कार की टंकार है .........      स्वानुभूत  प्रसूत इन गाथाओं चमत्कारिक शक्तिया है जिससे यह ग्रन्थ  इसमें वर्णित शुद्धात्म तत्त्व के बोध की प्रेरणा का  भाव प्रवाह आज भी श्रोताओ पाठको के हृदय में संचरित  कर सकने में समर्थ है ! 
   आकाश सी ऊंचाई रत्न सी जडित शब्दावली एवं अनुपम भावो से आच्छादित यह समयसार ग्रंथाधिराज एवं इसकी टीकाए जैन साहित्य की ही नहीं वरन सम्पूर्ण भारतीय प्राकृत , संस्कृत एवं हिंदी साहित्य का बेजोड़ संग्रहालय   है !
  आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी स्वयं लिखते है की जो भव्य जीव इस समय प्राभृत को पढ़कर उसे अर्थ एवं तत्त्व से जानकर , उसके अर्थ में स्वयं को स्थापित करेगा वह उत्तम सुख (अतीन्द्रिय मोक्षसुख )को प्राप्त करेगा !
 समयसार जिनवानी श्रुतगंगा का सारभूत  आध्यात्म रसपूर्ण ग्रन्थ शिरोमणि है ! समयसार केवली -श्रुतकेवली की वाणी सार है ! इसके अध्ययन -मनन- चिंतन एवं अनुभवन से अपने तथा पर के मोह का नाश होता है ऐसा अभिप्राय आचार्य अमृतचन्द्र ने भी व्यक्त किया है ! वे समयसार को जगत का अद्वितीय एवं अक्षय चक्षु है - ऐसा कहते है साथ ही लिखते है की समयसार से श्रेष्ठ महान वास्तव में जगत में कुछ भी नहीं है
    आचार्य जयसेन स्वामी समयसार की महिमा बताते हुए अपनी तात्पर्यवृत्ति   नामक टीका के अंत में घोसना करते है की आत्म रस के रसिको द्वारा वर्णित इस तात्पर्य नामक प्राभृत शास्त्र को जो कोई आदरपूर्वक सुनेगा , पढ़ेगा अभ्यास करेगा और इसकी प्रभावना करेगा वह जीव शाश्वत निर्मल अद्भुत केवलज्ञान को प्राप्त करके आगे मोक्ष रुपी लक्ष्मी में लीन रहेगा !
श्री कांजी स्वामी के शब्दों में समयसार की महिमा इस प्रकार है - " यह समयसार शास्त्र आगमो का भी आगम है लाखो शास्त्रों का सार इसमें है जैन शाषन  का स्तम्भ है , साधको की कामधेनु है कल्पवृक्ष है ! चौदह पूर्वो का रहस्य इसमें समाया हुआ है ! इसकी हर गाथा छटे -सातवे गुण स्थान में झूलते हुए महा मुनि के आत्मानुभव से निकली हुई है !   
 त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेव  के मुख से प्रवाहित श्रुतामृत की सरिता से जो अमृत कलश भर लिए गए है वे वर्तमान में भी अनेक आत्मार्थियो को आत्मा जीवन अर्पण करते है !इस शास्त्र का एकमात्र उद्देश्य यथार्थ आत्मस्वरूप की पहिचान करना है वास्तव में इस समय में यह शास्त्र मुमुक्षु भव्य जीवो का परम आधार है ऐसे दुशम काल में भी ऐसा अद्भुत अनन्य शरणभूत  शास्त्र है जिसमे तीर्थंकर देव के श्रीमुख से निकला हुआ अमृत विद्यमान है यह हम सबका महासौभाग्य है की हमें यह  शास्त्र सम्पूर्ण रूप से प्राप्त हुआ और साथ ही ग्रन्थ के भावो को सरल कर समझाने वाले आचार्यो की टीकाएँ भी प्राप्त हुई!
      इस सौभाग्य पर भी अधिक सौभाग्य हमारा है की आचार्य कुन्दकुन्द आचार्य अमृत चन्द्र के हृदय को समझने वाले वे संत जिनका की जीवन ही समयसार के कारण परिवर्तित हो गया और पूर्ण रूप से समयसारमय ही हो गया था ऐसे पूज्य गुरुदेव श्री कहान्जी स्वामी का प्रत्यक्ष समागम हमें प्राप्त हुआ जिनके द्वारा उदघाटित परम सत्य के द्वारा हम आचार्यो के हृदयंगम भावो का रसास्वादन कर सकने में समर्थ हो सके है .........................

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